बिहार में लघु उद्योगों के लिए वित्त पोषण संबंधी मुद्दे

16 December 23

Financing-Issues-Bihar

छोटे उद्योग हर क्षेत्र या देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं जो आर्थिक विकास, नवाचार और रोजगार के अवसर बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। बिहार राज्यों में इन लघु उद्योगों के लिए वित्तीय सहायता की कमी है। आइये बिहार में लघु उद्योगों के सामने आने वाली चुनौतियों, वित पोषण की कमी में योगदान देने वाले कारकों और इन मुद्दों के समाधान के बारे में चर्चा करें। 


बिहार में लघु उद्योगों के सामने चुनौतियां

बिहार राज्य में लघु उद्यम चुनौतियों का सामना करने की वजह से इनकी वृद्धि और स्थिरता की गति धीमी हो जाती है। यह चुनौतियां इस प्रकार से हैं :-

प्रशासनिक बाधाएँ

राज्य में उद्यमियों को अपने छोटे उद्यम स्थापित करने या उद्यम के विस्तार करने का प्रयास करने के लिए अक्सर प्रशासनिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्रशासन की जटिल प्रक्रियाएं और भ्रष्टाचार बिहार की आर्थिक वृद्धि के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। 

कुशल श्रम की कमी

हर व्यवसाय को बढ़ाने के लिए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है और दुर्भाग्यवश, बिहार में छोटे उद्यम कुशल और प्रशिक्षित कर्मचारी खोजने के लिए संघर्ष करते हैं, जिसकी वजह से नवाचार में कमी और प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता सीमित हो जाती है। 

अपर्याप्त बुनियादी ढांचा

बिहार में बुनियादी ढांचे की कमी है। सड़क, परिवहन, ऊर्जा और संचार सही ढंग से न होने के कारण लघु व्यवसाय को कुशलता पूर्वक काम करने और खुद का विस्तार करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। 

वितपोषण की कमी

वित पोषण की कमी एक सबसे गंभीर मुद्दा है। छोटे उद्योगों को बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी और मानव संसाधनों में निवेश करने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है और इसी कमी के कारण बिहार के अधिकांश उद्यमी एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं। 

सीमित बाजार पहुंच

लघु उद्योगों की सफलता के लिए इनकी पहुंच घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में होनी चाहिए, परंतु बिहार में इन उद्योगों को बाजारों तक पहुंचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसके कारण इनकी विकास क्षमता सीमित हो जाती है। 

कम वित्तपोषण में योगदान देने वाले कारक

उच्च जोखिम धारणा

सीमित वित्तीय इतिहास, बाजार में अनिश्चितता और राजस्व धाराओं के निश्चित न होने के कारण वित्तीय संस्थान छोटे उद्योगों को उच्च जोखिम वाले उद्यम मानते हैं और इसी धारणा के कारण लघु उद्योगों के लिए ऋण प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण बन जाता है। 

सीमित क्रेडिट इतिहास

ऋण प्राप्ति के लिए क्रेडिट इतिहास का होना महत्वपूर्ण है और बिहार के छोटे उद्योगों का या तो क्रेडिट इतिहास सीमित है या फिर क्रेडिट का कोई भी इतिहास नहीं है, जिसकी वजह से ऋण प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो जाता है। 

वित्तीय साक्षरता

बिहार में छोटे उद्योगों के पास वित्त पोषण प्राप्त करने के समय आने वाली जटिलताओं से निपटने के लिए आवश्यक वित्तीय ज्ञान नहीं है। वित्तीय साक्षरता की यह कमी आकर्षक व्यावसायिक प्रस्ताव तैयार करने और ऋण प्राप्त करने की उनकी क्षमता को सीमित कर देता है। 

सिक्योरिटी के लिए संपत्ति का अभाव

पारंपरिक बैंक ऋण देते हैं परंतु सुरक्षा के रूप में संपत्ति गिरवी रख लेते हैं। बिहार में कई छोटे उद्यमी ऐसे हैं जिनके पास पर्याप्त संपत्ति नहीं है जिसका उपयोग सिक्योरिटी के लिए किया जा सके। इस कारण से भी उनकी पहुंच वित्तपोषण तक सीमित हो जाती है। 

अनिमेष का दृष्टिकोण

अनिमेष का मानना है कि राज्य सरकार को इन चुनौतीयो के समाधान के रूप में कई पहल शुरू करनी चाहिए। जैसे :-

कौशल विकास

कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित करके स्थानीय कार्यबल की क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए ताकि व्यवसाय के लिए कुशल कर्मचारी ढूंढना आसान हो सके। 

वित्तीय सहायता

सरकार को छोटे उद्योगों को शुरुआती पूंजी प्राप्ति की चुनौतियों से निपटने के लिए सब्सिडी के माध्यम से सहायता करनी चाहिए। 

नियामक सरलीकरण

प्रशासनिक बाधाओं को कम करने और विनियामक प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करने के प्रयास किए जाने चाहिए, जिससे उद्यमियों को अपने उद्योगों को स्थापित करने और इनका विस्तार करने में आसानी हो सके। 

बैंक और एनबीएफसी से समर्थन

बैंकिंग क्षेत्र की भूमिका

लघु उद्योग के वित्त पोषण को बढ़ाने के लिए बैंकों को कुछ खास योजनाएं शुरू करनी चाहिए। बैंक कम ब्याज दरों पर छोटे उद्योगों के लिए विशेष ऋण योजना शुरू कर सकते हैं जिससे उद्यम के लिए ऋण लेना अधिक किफायती हो सके। 

छोटे उद्योगों में अनियमित नकदी प्रवाह देखा जाता है। इसके लिए बैंकों को लचीले भुगतान विकल्प प्रदान करने चाहिए। इससे उद्यमियों पर कुछ वित्तीय बोझ कम हो सकेगा। 

एनबीएफसी यानी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की भूमिका

एनबीएफसी मे पारंपरिक बैंकों की अपेक्षा ऋण प्राप्त करने की प्रक्रिया आसान व जल्दी होती है जिससे छोटे उद्यमियों को अधिक तेजी से धन प्राप्त करने में मदद मिलती है। एनबीएफसी संपत्ति मुक्त ऋण प्रदान करते हैं जिससे छोटे उद्योगों को सुरक्षा के तौर पर मूल्यवान संपत्ति गिरवी रखने की जरूरत नहीं होती। 

गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को छोटे उद्योगों की आवश्यकता के अनुसार वित्तीय उत्पाद और सेवाएं प्रदान करनी चाहिए और वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोत के रूप में काम करना चाहिए

निष्कर्ष

जैसा कि हमने जाना कि बिहार में छोटे उद्योगों को वित्त पोषण प्राप्त करने में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। राज्य सरकार की पहल, एनबीएफसी, बैंकिंग क्षेत्र और निजी निवेश के समर्थन से एक उज्जवल भविष्य की आशा की जा सकती है। 

निरंतर प्रयासों, सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं और बेहतर वित्तीय साक्षरता के साथ छोटे उद्यम फल-फूल सकते हैं और बिहार में रोजगार के अवसर प्रदान करने और आर्थिक विकास में योगदान दे सकते हैं।

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